शंख (Shankh) एक प्रकार के बिना रीढ़ की हड्डी वाले सागर के जीव का बाहरी खोल होता है। इस जीव को घोंघा (Snail) कहा जाता है। यह जीव बहुत कोमल, मुलायम और शर्मिला होता है। जिस कारण इसके शत्रु बहुत होते हैं। प्रकृति ने इसे बचाव के लिए बहुत कड़ा आवरण दिया है, जो इसके लिए कवच का काम करता है। इस कवच को न तो शत्रु खा पाता है न तोड़ पाता है। जिससे यह जीव इस कवच में सुरक्षित रहता है।
शंख | Shankh
जैसे-जैसे सागर के इस जीव का आकार बढ़ता है, वैसे-वैसे ही इस कवच (शंख) का आकार भी बढ़ता जाता है। समय के साथ यह कवच और अधिक कड़ा हो जाता। मरने पर कवच के अन्दर का जीव सागर के नमकीन के कारण, पानी में गल सड़ कर बाहर निकल जाता है। बचा हुआ कठोर कवच बाद में शंख (Shankh) कहलाता है। यह शंख पानी के ऊपर आ जाता है और तैरता हुआ सागर के किनारे तक पहुंच जाता है। उसकी अच्छी तरह सफाई करके और पोलीस करके ही इसे एक सुन्दर शंख का रूप दिया जाता है जो हम आम देखते है।
शंख का धार्मिक महत्व
हिन्दू धर्म में शंख (Shankh) को अति पवित्र माना जाता है। यह भगवान विष्णु के ऊपरी दायें हाथ में सुशोभित होता है। पौराणिक रूप से शंख की उत्पत्ति सागर मंथन से मानी जाती है। सागर मंथन में आठवें रतन के रूप में पाञ्चजन्य शंख की प्राप्ति हुई थी। यह शंख श्री हरि विष्णु जी को मिला था।
लक्ष्मी जी के बाद जो पाञ्चजन्य शंख निकला था उसे साला भी कहते है। इसलिए शंख को लक्ष्मी जी का भाई भी मानते हैं। यही से पत्नी के भाई को, साला कहा जाने लगा है। कहते हैं जहाँ-जहाँ शंख होता है वहां-वहां लक्ष्मी जी जरूर होती हैं। धार्मिक अवसरों पर हिंदू मंदिरों और घरों में पूजा के समय शंख बजाया जाता है। खासकर आरती के अनुष्ठान में शंख बजाया जाता है। शंख (Shankh) को बजाने को शंखनाद कहते है।
ऐतिहासिक महत्व
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार शंख चंद्रमा और सूर्य के समान ही देवस्वरूप है। विश्व का सबसे बड़ा शंख केरल राज्य के गुरुवयूर के श्रीकृष्ण मंदिर में सुशोभित है, जिसकी लंबाई लगभग आधा मीटर है तथा वजन दो किलोग्राम है। बौद्ध धर्म में शंख को आठ शुभ प्रतीकों में से एक के रूप में शामिल किया गया है, जिसे अष्टमंगल भी कहा जाता है। शंख त्रावणकोर के राज्य का शाही राज्य प्रतीक था। जाफना साम्राज्य के शाही ध्वज पर भी शंख अंकित था।
अथर्ववेद के अनुसार, शंख से राक्षसों का नाश होता है- शंखेन हत्वा रक्षांसि। महाभारत में कुरुक्षेत्र के महासंग्राम में भी हमें बहुत से शंखो का उल्लेख मिलता है। महाभारत में हर योद्धा के पास अपना अलग शंख था, जैसे श्री कृष्ण जी के शंख का नाम पाञ्चजन्य था, युधिष्ठिर के शंख का नाम अनन्तविजय था, भीम के शंख का नाम पौंड्र-खड्ग (पौंड्रम) था, अर्जुन नकुल के शंख का नाम देवदत्त था, नकुल के शंख का नाम सुघोष था और सहदेव के शंख का नाम मणिपुष्पक आदि था। हालांकि कुछ लोगों का मानना है कि श्री कृष्ण जी का पाञ्चजन्य शंख आदि बद्री में अभी भी सुरक्षित रखा हुआ है।
शंख का आयुर्वेद में महत्व:
शंख का उपयोग आयुर्वेद औषधीय शास्त्र में कई बीमारियों के इलाज के लिए किया जाता है। शंख सामग्री से बने पाउडर का उपयोग आयुर्वेद में पेट की बीमारियों के इलाज के रूप में किया जाता है। इसे शंख की राख के रूप में तैयार किया जाता है। जिसे संस्कृत में शंख भस्म के नाम से जाना जाता है। शंखनाद से दूर-दूर तक वातावरण शुद्ध व सुखमय हो जाता है। इसकी ध्वनि के प्रसार-क्षेत्र तक सभी कीटाणुओं का नाश हो जाता है।
शंख में थोडा सा चूने और पानी भरकर पीने से कैल्शियम की स्थिति शरीर में अच्छी हो जाती है। शंख बजाने से ह्रदय रोग और फेफड़ों की बीमारियाँ होने की सम्भावना कम हो जाती है। शंख में रखा पानी पीने से याददास्त बढ़ती है। इससे बार-बार भूलने की बीमारी दूर होती है। शंख में रखा पानी सभी पवित्र नदियों का संगम माना जाता है। इसलिए शंख में रखे पानी को सुबह खाली पेट पीने से शरीर में चुस्ती फुर्ती आती है।
शंख के प्रकार | Types of Shankh:
शंख कई प्रकार के होते हैं और सभी प्रकार के शंखो की विशेषता एवं पूजन-पद्धति भिन्न-भिन्न होती है। शंख की आकृति के आधार पर सामान्यतः इसके तीन प्रकार माने जाते हैं:-
- वामावर्ती शंख
- दक्षिणावर्ती शंख
- मध्यावृत्ति शंख।
वामावर्ती शंख:
वामावर्ती शंख का पेट बाईं ओर खुला होता है। इसे बजाने के लिए इसके एक सिरे पर छिद्र होता है। आम तौर पर जो शंख बजाया जाता है वह वामावर्ती शंख ही होता है। इसे दाहिने हाथ से पकड़ कर बजाया जाता है। यह आम मिलता है, क्योंकि यह बहुतायत में पैदा होता है। वामावर्ती शंख को बजाने से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है। वामावर्ती शंख श्री हरि विष्णु जी का प्रतीक होता है। इसकी ध्वनि से रोग जनक कीटाणु मर जाते हैं।
इस शंख को दक्षिणावर्ती इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसका पेट वामावर्ती शंख के विपरीत दाईं ओर खुलता है। दक्षिणावर्ती शंख बहुत दुर्लभ होता है, यह आम नहीं मिलता है। दक्षिणावर्ती शंख का मुँह बंद होता है, इसलिए यह बजाने में प्रयोग नहीं होता है। दक्षिणावर्ती शंख लक्ष्मी जी का प्रतीक होता है। दक्षिणावर्ती शंख को घर में रखा जा सकता है।
दक्षिणावर्ती शंख की पूजा से खुशहाली आती है, लक्ष्मी की प्राप्ति होती है, धन-संपत्ति भी बढ़ती है। इस शंख की उपस्थिति ही कई रोगों का नाश कर देती है। दक्षिणावर्ती शंख में रात में जल भरकर रख दिया जाए और सुबह खाली पेट उस जल को पिया जाए तो पेट के रोग जल्दी समाप्त हो जाते हैं।
दक्षिणावर्ती शंख दो प्रकार के होते है:
- नर दक्षिणावर्ती शंख: नर दक्षिणावर्ती शंख की परत मोटी और वजन में भारी होता है।
- मादा दक्षिणावर्ती शंख: मादा दक्षिणावर्ती शंख की परत पतली और वजन में हल्का होता है।
मध्यावर्ती (गणेश) शंख:
मध्यावर्ती शंख का पेट मध्य में खुला होता है। इसे गणेश शंख भी कहते है, क्योकि इसकी आकृति हू-ब-हू गणेशजी जैसी लगती है। सागर मंथन के दौरान 8वें रत्न के रूप में गणेश शंख की उत्पत्ति हुई थी। यह शंख दरिद्रता नाशक और धन प्राप्ति का कारक होता है। गणेश शंख की विधिवत पूजा-अर्चना करने से मन इच्छित नौकरी मिलती है। आर्थिक, व्यापारिक, कर्ज और पारिवारिक समस्याओं से मुक्ति पाने का श्रेष्ठ उपाय श्री गणेश शंख है। मध्यावर्ती शंख भी दुर्लभ होता है और यह भी आम नहीं मिलता है।
शंख के अन्य प्रकार:
ऊपर दिए गए तीन प्रकार के शंखों के अलावा सुदर्शन शंख, चंद्र शंख, सूर्य शंख, गदा शंख, मादा शंख, गोमुखी शंख, कामधेनु शंख, चक्र शंख, पौंड्र शंख, सुघोष शंख, गरुड़ शंख, मणिपुष्पक शंख, राक्षस शंख, शनि शंख, राहु शंख, केतु शंख, शेषनाग शंख, कच्छप शंख और अन्य भी कई प्रकार के शंख होते हैं।
शंख को मंदिर में किस प्रकार रखें:
- खण्डित शंख को कभी भी मंदिर में ना रखें।
- घर में मंदिर के उत्तर, पूर्व या ईशान में बने होने पर ही शंख मंदिर में रखें अन्यथा न रखे।
- मंदिर में एक साथ दो शंख नहीं रखे जाते भले ही वो दोनों वामावर्ती हो या दोनों दक्षिणावर्ती हो या एक वामावर्ती और एक दक्षिणावर्ती हो।
- अगर मंदिर में वामावर्ती और दक्षिणावर्ती दोनों शंख है तो दक्षिणावर्ती को वेदी (चौकी) पर रखे और वामावर्ती शंख को वेदी से थोड़ा दूर रखे।
- शंख का आकार हमारी हथेली जितना बड़ा या उससे थोड़ा छोटा होना चाहिए। शंख ज्यादा छोटा नहीं होना चाहिए।
- शंख को धरती पर भी नहीं रखना चाहिए। शंख को हमेशा एक साफ कपड़ा बिछाकर रखना चाहिए।
- शंख को कभी भी उल्टा करके न रखे। हमेशा खुले पेट वाला भाग ऊपर रखे।