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Bronze | काँसा

काँसा (Bronze) एक धातु ना होकर एक उप धातु (Alloy) है क्योंकि ये ताम्बा (Copper) और वंग (Tin) से मिलकर बनी होती है। दो धातुओं के मिश्रण के कारण यह एक मिश्रित धातु या उपधातु (Alloy) है। कांसा धातु इतनी महत्वपूर्ण है की इस धातु पर पूरा एक युग चला था, जिसे कांस्य युग कहा जाता है।

काँसा | Bronze

काँसा धातु क्या है | What is Bronze Metal

संसार में जितनी भी धातुएं है वह सभी मुख्य आठ धातुओं से बनी है जिन्हे अष्ट महा धातु कहा जाता है। यह अष्ट महा धातु है :-

  1. सोना (Gold)
  2. चाँदी (Silver)
  3. तांबा (Copper)
  4. जस्ता/जस्त (Zinc) 
  5. वंग/रांगा (Tin) 
  6. लोहा (Iron)
  7. सीसा/नाग (Lead)
  8. पारा/पारद/रस (Mercury)

काँसा इन्ही अष्ट महा धातुओं में से दो धातुओं ताम्बा (Copper) और वंग (Tin) से बनी है। काँसे में ताम्बा (Copper) 80% और वंग (Tin) 20% होता है। काँसे में इन दो धातुओं के बिना कोई अन्य धातु नहीं मिलाई जाती है। अगर काँसे में सीसा (Lead) धातु मिला दी जाए तो वह मिलावटी काँसा धातु होती है। सीसा मिलाने के कारण काँसे की भोजन संबंधी उपयोगिता समाप्त हो जाती है। अगर काँसे में सीसा और जस्त दोनों मिला दिया जाए तो यह गन मेटल बनता है। जिससे हथियार आदि बनते है।

काँसा धातु दो प्रकार का होती है :-

  1. पुष्प काँसा
  2. तैलीय काँसा

तैलीय काँसा के बने बर्तन प्रयोग नहीं करने चाहिए। यह खाने में जहर उत्पन्न कर सकता है। काँसे के बर्तन सिर्फ और सिर्फ पुष्प काँसे के बने होने चाहिए। पुष्प काँसे की ध्वनि तेज और मधुर होती है पर तैलीय काँसे की ध्वनि कम और मधुर नहीं होती है।

मंदिर में लगने वाली छोटी से बड़ी घण्टी भी काँसे की बनी होनी चाहिए। काँसे की घण्टी सबसे श्रेष्ठ होती है। मंदिर की घण्टी कभी भी पीतल या किसी अन्य धातु की नहीं बनी होनी चाहिए। शुद्ध पुष्प काँसे की बनी घण्टी की ध्वनि बहुत ही मधुर होती है जो हमारे सभी सातों चक्रों पर अपना प्रभाव डालती है। पुष्प काँसे से बनी घण्टी वातावरण को भी शुद्ध करती है।

पुष्प काँसे के बने घुँघरु भी सबसे श्रेष्ठ होते है। घुंघरु में ताम्बे और वंग का अनुपात क्रमशः 75% और 25% होता है। घुँघरु की आवाज भी वही कार्य करती है जो मंदिर में लगी घण्टी करती है। तिलक करने के लिए कुमकुम को भी काँसे की तसली में रखना चाहिए।

पिता द्वारा पुत्री के विवाह में दिया जाने वाला सामान तब तक अधूरा माना जाता था जब  तक उसमे काँसे के बर्तन शामिल नहीं किये जाते थे। किसी जमाने में भारतीय रसोई में काँसे, तांबे, पीतल और मिट्टी के बर्तन ही पाए जाते थे। पर वर्तमान समय में काँसे का प्रयोग बिल्कुल ही खत्म हो चुका है। 

सनातन धर्म में जब घर में संतान का जन्म होता है तो काँसे की बनी थाली ही बजाई जाती है जिससे घर का वातावरण शुद्ध हो जाता है। पर वर्तमान समय में संतान के जन्म पर स्टील की थाली भी बजा देते हो जो की पूर्णतः गलत है।

काँसे के बर्तन का प्रयोग पैरों के तलवों की मालिश करने के लिए भी प्रयोग कर सकते है। पैरों के तलवों की मालिश को पादाभ्यंग कहा जाता है। पादाभ्यंग करने से हमारे शरीर को अद्भुत लाभ मिलते है।

काँसे के बर्तन में भोजन करने के फायदे | Benefits of Eating Food in Bronze Utensils

काँसे के बर्तन उपयोग करने में सावधानियां | Precautions for Using Brass Utensils

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