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प्राणायाम | Pranayam

प्राणायाम एक प्राचीन सांस तकनीक है जो भारत में योग प्रथाओं से उत्पन्न हुई है। इसमें विभिन्न शैलियों और लंबाई में अपनी सांस को नियंत्रित करना शामिल है। प्राणायाम अभ्यास से मिलने वाले कई स्वास्थ्य लाभों के कारण इसने हाल ही में पश्चिमी दुनिया में लोकप्रियता हासिल की है। प्राणायाम को समझने से पहले हमें प्राण और आयाम शब्द को समझना होगा।

प्राणायाम क्या है? | What is Pranayam?

प्राणायाम दो शब्दों प्राण + आयाम के मेल से बना है। प्राणायाम में विभिन्न शैलियों और लंबाई में अपनी सांस को नियंत्रित किया जाता है। इन साँसों के नियमन से हमारे शरीर के लगभग हर एक अंग में प्राण यानी जीवन दायनी ऊर्जा का प्रवाह नियमित होता है। श्वास को लेने और छोड़ने के दरमियान घंटों का समय प्राणायाम के अभ्यास से ही संभव हो पाता है।

प्राण क्या है ? | What is Pranayam?

प्राण एक जीवन ऊर्जा है, जिससे यह पूरी सृष्टि का क्रम चल रहा है। हमारे पांच तत्वों के बने शरीर में प्राण ऊर्जा होने पर ही हम जीवित कहलाते है। प्राण ऊर्जा के ना होने पर हमारा शरीर एक मृत शरीर कहलाता है और वापस पांच तत्वों में विलीन हो जाता है। प्राण ऊर्जा का जो नियम मनुष्य के शरीर पर लागु होता है वही नियम इस पृथ्वी पर रह रहे सभी जीव-जन्तुओ, पशु-पंछियो और पेड़-पोधो पर लागु होता है। पेड़-पोधो का बढ़ना, पंछीयो का आकाश में उड़ना, मनुष्य का अपने जीवन में विकास करना, हवा का चलना, पानी का बहना आदि यह सब प्राण ऊर्जा के कारण ही संभव है।

हमारा मनुष्य शरीर बहुत ही सूक्ष्म तत्वों का बना हुआ है। अनेको सूक्ष्म तत्व मिल कर एक कोशिका (Cell) का निर्माण करते है, अनेको कोशिकाएं मिलकर एक ऊतक (Tissue) का निर्माण करती है, अनेको ऊतक मिल कर एक अंग (Organ) का निर्माण करते है, कई अंग मिल कर एक अंग प्रणाली (Organ System) का और कई अंग प्रणालियां मिल कर एक शरीर (Body) का निर्माण करती है। हमारे शरीर का हर एक अंग अपना-अपना विशेष कार्य करता है।

हर एक अंग को अपना कार्य करने के लिए ऊर्जा की जरुरत होती है और यह ऊर्जा उन्हें रक्त से मिलती है। रक्त को ऊर्जा ऑक्सीजन से मिलती है। ऑक्सीजन हमें सांसों के चलने से मिलती है। इस तरह सांसों के चलने से रक्त को ऊर्जा मिलती है और रक्त से हमारे पूरे शरीर के अंगो को कार्य करने के लिए ऊर्जा मिलती है। इस तरह सांसे ही हमारे शरीर का मूल केंद्र बिंदु है। अब प्रश्न यह है की सांसो को चलते रहने के लिए कौन सी ऊर्जा की जरूरत होती है। सांसो को चलाने वाली ऊर्जा ही प्राण है या प्राण ऊर्जा है।

प्राण के प्रकार

प्राण दस प्रकार के होते है। सांस लेने की क्रिया के संबंध में योग शास्त्र के अनुसार 10 प्रकार की वायु बताई गई है। इनमें से पांच प्रकार की वायु का उल्लेख हमें आम मिलता है, जो इस प्रकार है:-

हमारा पूरा शरीर इन्हीं पांच प्राण के आधार पर चल रहा है। अच्छे स्वास्थ्य में इन सभी प्रकार की वायु पर नियंत्रण रखना अति आवश्यक है। प्राणायाम इन पंच प्राणों पर सीधा प्रभाव देता है।

वायु स्थान कार्य
प्राणगला और फेफड़ेइसका क्षेत्र कंठ नली से श्वास पटल के मध्य है, इसको प्राण वायु कंट्रोल करता है। यह जीवन शक्ति है। प्राण वायु के संतुलित होने से मन और भावनाएँ संतुलित और शांत रहती हैं।
अपाननाभि के नीचेनाभि के नीचे जितने भी अंग हैं, उनकी कार्यप्रणाली को अपान वायु द्वारा नियंत्रित करता है। जो कुछ हम खाते हैं, उसको पचाना और जो व्यर्थ है उसे मल-मूत्र के रूप में बाहर निकलना, यह सब कार्य अपान वायु से संचालित होते हैं। अपान वायु हमारे पाचन क्रिया को नियंत्रित करती है। गाल ब्लैडर, लिवर, छोटी आंत, बड़ी आंत आदि ये सभी अंग इसी क्षेत्र में आते हैं।
समाननाभियह हमारे शरीर के मध्य भाग में होती हैं। अपान और उदान की जो संतुलन बनाने का कार्य समान वायु के द्वारा होता है।
उदानकंठ से ऊपरकंठ से ऊपर जितने भी अंग हैं जैसे आँख, कान, नाक, जीभ, गला आदि  ये ज्ञानेन्द्रियाँ जो हैं, इनके सारे कार्य उदान वायु के द्वारा नियंत्रित होते हैं। जब तक उदान वायु है, तब तक आंखें देखेंगी, कान सुनेंगे, जीभ बोलेगी, नाक सूंघेगा। उदान वायु के द्वारा हमारी नाभि के ऊपर के सारे अंग, जैसे हृदय, फेफड़े आदि यह सब उदान की शक्ति से कार्य करते हैं।
व्यानहृदय से पूरा शरीरयह प्राण हमारे ह्रदय से उत्पन्न होती है और पूरे शरीर में फैली होती है। इसको हम सर्वव्यापी भी बोलते हैं अर्थात जो पूरे शरीर में फैला हुआ है।

अन्य पांच प्रकार के प्राण इस प्रकार है:-

यह प्राण ऊपर दिए गए पांच प्राणों के उप-प्राण हैं। इनके अंतर्गत कार्य आते है जैसे हिचकी आना, पलकों का झपकना, छींक आना, उबासी आना आदि।

आयाम क्या है? | What is Aayam?

आयाम के दो अर्थ है- प्रथम नियंत्रण या रोकना, द्वितीय विस्तार। इस तरह आयाम का अर्थ है प्राण को शरीर में नियंत्रित करना और उसका शरीर में विस्तार करना।

प्राणायाम क्या है? | What is Pranayam?

पतंजलि योग सूत्र के द्वारा शरीर, मन और प्राण की शुद्धि तथा परमात्मा की प्राप्ति के लिए आठ प्रकार के योग बताए हैं, जिसे अष्टांग योग कहते हैं, ये इस प्रकार हैं- यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि। प्राणायाम पतंजलि योग सूत्र के अष्टांग योग का चौथा अंग है। नाक से बाहरी वायु का भीतर प्रवेश करना श्वास कहलाता है और भीतर की वायु का बाहर निकलना प्रश्वास कहलाता है। इन दोनों के नियंत्रण का नाम प्राणायाम है।

"प्राणस्य आयाम: इत प्राणायाम’।
 श्वासप्रश्वासयो गतिविच्छेद: प्राणायाम”

अर्थात प्राण की स्वाभाविक गति श्वास-प्रश्वास को रोकना प्राणायाम (Pranayam) है। सामान्य भाषा में जिस क्रिया से हम श्वास लेने की प्रक्रिया को नियंत्रित करते हैं उसे प्राणायाम (Pranayam) कहते हैं।

शरीर में दूषित वायु के होने की स्थिति में भी उम्र क्षीण होती है और रोगों की उत्पत्ति होती है। पेट में पड़ा भोजन दूषित हो जाता है, जल भी दूषित हो जाता है तो फिर वायु क्यों नहीं। यदि आप लगातार दूषित वायु ही ग्रहण कर रहे हैं तो समझो कि समय से पहले ही रोग और मौत के निकट जा रहे हैं।

प्राणायाम के प्रकार

हठयोग में आठ प्रकार के प्राणायामों का उल्लेख किया गया है –

हर प्राणायाम का अपना विशेष फायदा होता है, जैसे कि संतुलित श्वास के लिए अनुलोम विलोम, मानसिक शांति के लिए भ्रामरी, ठंडाई महसूस करने के लिए शीतली, और ऊर्जा को बढ़ाने के लिए उज्जायी।

प्राणायाम करने से पहले ध्यान देने योग्य तथ्य-

प्राणायाम करने की विधि

प्राणायाम में हम पूरक (Puraka), कुंभक (Kumbhaka) और रेचक (Rechaka) की क्रिया करते हैं। जिससे प्राणायाम की सामान्य विधि पूर्ण होती है।

प्राणायाम करने के लाभ –

प्राणायाम एक प्राचीन भारतीय योग तकनीक है जो श्वास के साथ संजोगित है। इसका मुख्य उद्देश्य मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को संतुलित करना है। प्राणायाम के अभ्यास से अनुभव होने वाले लाभ अनगिनत हैं, जिसमें स्थिरता, शांति, और आनंद का अनुभव शामिल है।

ऊपर दिए गए लाभों के अतिरिक्त अगर हम प्राणायाम प्रतिदिन सुबह आधा घंटा नियम और परहेजों के साथ करने से निश्चित रुप से शरीर की असंख्य बीमारियों का खात्मा होता है।

सावधानियां

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